अतिरिक्त >> उठो हिम्मत करो उठो हिम्मत करोश्यामचन्द्र कपूर
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इसमें मनुष्य को ऊँचा उठने के लिए कुछ लिए कुछ विशेष बातें...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मनुष्य को जीवन में ऊँचा उठने के लिए उसे समाज में रहने
वाले प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। तभी आप जीवन को
सफल बना सकते है। आप अच्छी आदतों,व बर्ताव के द्वारा सभी के प्रिय बन सकते
है। ऐसे ही सभी गुणों से सुसज्जित यह पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।
अच्छी आदतें
मनुष्य पर परिवार के रीति-रिवाजों का भी गहरा असर पड़ता है। वह परिवार के
वातावरण में जो कुछ सीखता है, वही उसके स्वभाव में उतर आता है, फिर वह जब
समाज में जाता है, तो अपनी आदतें दूसरों को सिखलाता है।
बर्ताव की कोई छोटी-सी बात यदि समाज में बुरी मानी जाती है, तो उसे तुरन्त छोड़ देना चाहिए, क्योंकि वह यदि स्वभाव में जड़ जमा ले तो उसको छोड़ना कठिन हो जाता है। छोटी-सी-छोटी बात के बड़ी दूर तक जाने वाले परिणाम होते हैं। यदि छोटी-छोटी अच्छी बातें अपना ली जाएं, तो वे स्वभाव में उतर आती हैं। वे आदत का रूप धारण कर लेती हैं। उनसे मनुष्य का जीवन खिलता है।
इसी तरह छोटी-छोटी बुरी आदत को छोड़ने का फौरन यत्न करना चाहिए, क्योंकि यदि वह जड़ पकड़ ले, तो छूटनी मुश्किल हो जाती है। बुरी आदत की तुलना एक ऐसे पेड़ से की जा सकती है, जो शुरू में ही टेढ़ा हो गया हो और टेढ़ा होकर बड़ा हुआ हो। उसे सीधा नहीं किया जा सकता। इसलिए हर एक आदमी को अपनी छोटी-सी-छोटी बुरी आदत त्याग देनी चाहिए। अच्छी चेष्टाओं की, अच्छे बर्ताव की, अच्छे कामों की आदत अपनानी चाहिए।
माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे से कोमल बर्ताव करें, परन्तु उनकी आदतों पर कड़ी निगरानी रखें। कुटेवों को दूर करने के लिए बहुत अधिक प्रयत्न करना पड़ता है। प्रयत्न किए बिना ये दूर नहीं होती।
जब कोई बड़ा अपराध हो जाता है, तो समाज को धक्का-सा लगता है। परन्तु जब ‘चोर’ नामक मनुष्य को देखते हैं, तो हैरान रह जाते हैं कि साधारण मनुष्य के और चोर के रूप में कोई फर्क नहीं। तो अन्तर किस बात में है ?
अन्तर उसकी आदतों में है। बचपन में जब छोटी मोटी वस्तुएँ वह चुराता है, तो उसके माता-पिता उससे कैसा बर्ताव करते हैं-इसी पर निर्भर है कि वह सज्जन बनेगा या चोर।
अच्छी वस्तुओं को अपनाना, श्रेष्ठ काम करना और अच्छा बर्ताव करना इन्हीं बातों से जीवन का विकास होता है। शान्ति, सन्तोष, भलाई, उपयोगिता आदि गुणों का विकास जीवन में अवश्य करना चाहिए। इनकी गिनती अच्छी आदतों में होती है।
कहा जाता है कि यदि आप शैतान के एक बच्चे को अपने घर में बुलाएं तो उसका सारा ‘परिवार ही बिना बुलाए आ पहुंचता है। लापरवाही को बुलाएं, तो सुस्ती और आलस्य अपने आप आ जाएंगे। चिन्ता को बुलाएं, भय साथ ही आ जाएगा। खेद को बुलाएं, क्रोध आप ही दौड़ा आएगा। मनमानी को बुलाएं तो गिरावट अपने आप आ जाएगी। मतलब यह कि कोई बुरी लत पड़ने नहीं देनी चाहिए। यदि कोई बुरी आदत स्वभाव में घुसने लगे तो उसको तुरन्त बाहर निकाल बाहर करना चाहिए। झूठ, चोरी, शराब, सिगरेट, निन्दा, चुगली और जुआ ये सबसे बुरी बातें हैं। इनको फौरन छोड़ देना चाहिए।
बर्ताव की कोई छोटी-सी बात यदि समाज में बुरी मानी जाती है, तो उसे तुरन्त छोड़ देना चाहिए, क्योंकि वह यदि स्वभाव में जड़ जमा ले तो उसको छोड़ना कठिन हो जाता है। छोटी-सी-छोटी बात के बड़ी दूर तक जाने वाले परिणाम होते हैं। यदि छोटी-छोटी अच्छी बातें अपना ली जाएं, तो वे स्वभाव में उतर आती हैं। वे आदत का रूप धारण कर लेती हैं। उनसे मनुष्य का जीवन खिलता है।
इसी तरह छोटी-छोटी बुरी आदत को छोड़ने का फौरन यत्न करना चाहिए, क्योंकि यदि वह जड़ पकड़ ले, तो छूटनी मुश्किल हो जाती है। बुरी आदत की तुलना एक ऐसे पेड़ से की जा सकती है, जो शुरू में ही टेढ़ा हो गया हो और टेढ़ा होकर बड़ा हुआ हो। उसे सीधा नहीं किया जा सकता। इसलिए हर एक आदमी को अपनी छोटी-सी-छोटी बुरी आदत त्याग देनी चाहिए। अच्छी चेष्टाओं की, अच्छे बर्ताव की, अच्छे कामों की आदत अपनानी चाहिए।
माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे से कोमल बर्ताव करें, परन्तु उनकी आदतों पर कड़ी निगरानी रखें। कुटेवों को दूर करने के लिए बहुत अधिक प्रयत्न करना पड़ता है। प्रयत्न किए बिना ये दूर नहीं होती।
जब कोई बड़ा अपराध हो जाता है, तो समाज को धक्का-सा लगता है। परन्तु जब ‘चोर’ नामक मनुष्य को देखते हैं, तो हैरान रह जाते हैं कि साधारण मनुष्य के और चोर के रूप में कोई फर्क नहीं। तो अन्तर किस बात में है ?
अन्तर उसकी आदतों में है। बचपन में जब छोटी मोटी वस्तुएँ वह चुराता है, तो उसके माता-पिता उससे कैसा बर्ताव करते हैं-इसी पर निर्भर है कि वह सज्जन बनेगा या चोर।
अच्छी वस्तुओं को अपनाना, श्रेष्ठ काम करना और अच्छा बर्ताव करना इन्हीं बातों से जीवन का विकास होता है। शान्ति, सन्तोष, भलाई, उपयोगिता आदि गुणों का विकास जीवन में अवश्य करना चाहिए। इनकी गिनती अच्छी आदतों में होती है।
कहा जाता है कि यदि आप शैतान के एक बच्चे को अपने घर में बुलाएं तो उसका सारा ‘परिवार ही बिना बुलाए आ पहुंचता है। लापरवाही को बुलाएं, तो सुस्ती और आलस्य अपने आप आ जाएंगे। चिन्ता को बुलाएं, भय साथ ही आ जाएगा। खेद को बुलाएं, क्रोध आप ही दौड़ा आएगा। मनमानी को बुलाएं तो गिरावट अपने आप आ जाएगी। मतलब यह कि कोई बुरी लत पड़ने नहीं देनी चाहिए। यदि कोई बुरी आदत स्वभाव में घुसने लगे तो उसको तुरन्त बाहर निकाल बाहर करना चाहिए। झूठ, चोरी, शराब, सिगरेट, निन्दा, चुगली और जुआ ये सबसे बुरी बातें हैं। इनको फौरन छोड़ देना चाहिए।
अच्छा बर्ताव
मनुष्य में बातचीत और बर्ताव की कुशलता का गुण अवश्य होना चाहिए। इसके
बिना वह अपने साथियों और मित्रों का विश्वासपात्र नहीं बन सकता। यदि वह
अपने पेशे, या धन्धे में सफलता पाना चाहता है, तो उसे ये गुण अवश्य सीखने
होंगे।
अच्छे मित्र, अपने लेखक मित्र की लिखी प्रत्येक पुस्तक की हर मौके पर चर्चा किया करते हैं। वे मित्र दुकानदार के माल की तारीफ किया करते हैं, वे मित्र वकील की वकालत की तारीफ किया करते हैं, मित्र डॉक्टर के इलाज की प्रशंसा किया करते हैं, यदि कोई मनुष्य उनके मित्र की निन्दा करे, उस पर कलंक लगाए, उसके झूठ दोष बताए, तो वे मित्र का बचाव करते हैं। वे मित्र का हित करते हैं। मित्र के ऊपर लगाए गए आरोपों की काट करते हैं। जो मित्र इस प्रकार की मित्रता निभाएं, उन्हें ही हम बर्ताव में कुशल कह सकते हैं।
बहुत से लोग केवल इसलिए पिछड़े रहते हैं कि वे दूसरे लोगों के साथ मिल-जुलकर तालमेल से काम नहीं कर सकते। उनकी आदतें ही कुछ ऐसी होती हैं कि वे दूसरों को अपने से दूर हटाते हैं। वे दूसरों के साथ सहयोग और सहकारिता से काम नहीं कर सकते, परिणाम यह होता है कि वे अकेले ही काम करते रहते हैं और उस शक्ति को खो बैठते हैं, जो संगठन से मिलती है।
एक आदमी का जीवन केवल इसलिए नष्ट हो गया कि उसमें बर्ताव की कुशलता नहीं थी। वह कभी दूसरों के साथ मिलकर काम नहीं कर सका। उसमें दूसरी सभी योग्यताएं हैं, जिनसे वह बड़ा आदमी बनता, परन्तु उसमें एक ऐसा दोष भी है कि जिससे वह लोगों को जल्दी नाराज कर देता है। इसलिए वह गरीब हो गया है। वह हमेशा गलत काम करता है। वह गलत बोलता है। इच्छा न होते हुए भी वह लोगों की भावना को चोट पहुंचाता है। अपने इस काम से वह अपना प्रभाव नष्ट कर देता है। कारण वही है। उसे पता ही नहीं कि बर्ताव की कुशलता किसे कहते हैं।
कई लोग अपने आपको मुंहफट समझते हैं और इस पर घमंड करते है। वे सोचते हैं, यह ईमानदारी है, यह ऊंचे चाल-चलन की निशानी है। वे बात को घुमा-फिराकर कहना दुर्बलता समझते हैं, लोगों से बर्ताव करने में चतुराई बरतना वे फिजूल समझते हैं।
लेकिन इस प्रकार के आदमी कभी भी अधिक सफलता नहीं प्राप्त करते। वे लोग अपने को ईमानदार समझते है; परन्तु उनमें बर्ताव की चतुराई की कमी है। उनमें समझदारी की कमी है। इसके कारण उनके अच्छे काम भी धरे रह जाते हैं। वे नहीं जानते कि लोगों को वश में कैसे किया जाता है। वे लोगों से मेल-मिलाप बना नहीं पाते और सदा कष्ट पाते हैं।
यह सच है कि हम सब मनुष्य हैं और चाहते हैं कि हमसे बर्ताव करने वाला सोच-विचारकर बर्ताव करे। हमें उन्हीं से व्यवहार करने में प्रसन्नता होती है, जो सोचकर व्यवहार और बातचीत करे। बर्ताव में कुशलता समझदारी का ही दूसरा नाम है।
मुंहफट होना मूर्खता है, बुद्धिहीनता है। मुंहफट आदमी अच्छा नहीं होता। मुंहफट की बात दूसरों के हृदय में घाव कर देती है।
आप भले ही मुंहफट होना गुण मानते हों, लेकिन लोग इसे पसंद नहीं करते। वे मुंहफट आदमी की तारीफ नहीं करते। कुछ लोग जैसा सोचते हैं, बिल्कुल वैसा ही कह देते हैं। ऐसे लोगों के अधिक और अच्छे मित्र नहीं होते। उन्हें काम-धन्धें में, व्यापार में भी ऊंचे दर्जे की सफलता नहीं मिलती। जो सत्य दूसरे के दिल को चोट पहुंचाए, उसे न कहना ही अच्छा है।
एडीसन ने कहा है-‘‘किसी मनुष्य में भले ही विद्या या बुद्धि अधिक न हो; परन्तु उसमें स्वाभाविक समझदारी और सूझबूझ हो, तो वह अपने संपर्क में आए लोगों के साथ अधिक मेल जोल पैदा कर सकता है और यदि इस गुण की कमी हो, तो भले ही वह कितना बुद्धिमान हो, दूसरों से मेलजोल में सफल नहीं होता।’’
एक अन्य लेखक ने लिखा है-‘‘बड़ी शक्तिवाला आदमी भी यदि चतुराई के बिना छोटी-सी शक्ति को अपने वश में करने का प्रयत्न करे, तो वह छोटी शक्ति कई बार जोरदार मुकाबला करती है।’’
बर्ताव में कुशल मनुष्य न केवल उस काम में अधिक लाभ पा लेता है, जिसे वह जानता है, बल्कि उन कामों में भी लाभ प्राप्त कर लेता है, जिन्हें वह नहीं जानता। वह अपनी चतुराई का ठीक ढंग से प्रयोग करके, न केवल अपने अज्ञान को छिपा लेता है बल्कि अनजाने स्थान में ही अपनी चतुराई से दूसरों से काम लेकर, सफलता प्राप्त कर लेता है। चतुराई और व्यवहार की कुशलता के बिना आदमी अपने जाने-पहचाने स्थान में भी अनाड़ी साबित होता है।
नम्रता और मुस्कराहट ये दो बातें लोक-व्यवहार में बड़ी उपयोगी होती हैं। बोली की मिठास से आपस में तनाव दूर हो जाता है। हम कई बार मुस्करा पड़ते हैं और बाद में हमें पता चलता है कि हमारी मुस्कान ने बात को बिगड़ने से बचा लिया है, पर मुस्कान में छल नहीं होना चाहिए। मुस्कान वही विजयी होती है, जिसके पीछे सच्चाई का बल हो।
अच्छे मित्र, अपने लेखक मित्र की लिखी प्रत्येक पुस्तक की हर मौके पर चर्चा किया करते हैं। वे मित्र दुकानदार के माल की तारीफ किया करते हैं, वे मित्र वकील की वकालत की तारीफ किया करते हैं, मित्र डॉक्टर के इलाज की प्रशंसा किया करते हैं, यदि कोई मनुष्य उनके मित्र की निन्दा करे, उस पर कलंक लगाए, उसके झूठ दोष बताए, तो वे मित्र का बचाव करते हैं। वे मित्र का हित करते हैं। मित्र के ऊपर लगाए गए आरोपों की काट करते हैं। जो मित्र इस प्रकार की मित्रता निभाएं, उन्हें ही हम बर्ताव में कुशल कह सकते हैं।
बहुत से लोग केवल इसलिए पिछड़े रहते हैं कि वे दूसरे लोगों के साथ मिल-जुलकर तालमेल से काम नहीं कर सकते। उनकी आदतें ही कुछ ऐसी होती हैं कि वे दूसरों को अपने से दूर हटाते हैं। वे दूसरों के साथ सहयोग और सहकारिता से काम नहीं कर सकते, परिणाम यह होता है कि वे अकेले ही काम करते रहते हैं और उस शक्ति को खो बैठते हैं, जो संगठन से मिलती है।
एक आदमी का जीवन केवल इसलिए नष्ट हो गया कि उसमें बर्ताव की कुशलता नहीं थी। वह कभी दूसरों के साथ मिलकर काम नहीं कर सका। उसमें दूसरी सभी योग्यताएं हैं, जिनसे वह बड़ा आदमी बनता, परन्तु उसमें एक ऐसा दोष भी है कि जिससे वह लोगों को जल्दी नाराज कर देता है। इसलिए वह गरीब हो गया है। वह हमेशा गलत काम करता है। वह गलत बोलता है। इच्छा न होते हुए भी वह लोगों की भावना को चोट पहुंचाता है। अपने इस काम से वह अपना प्रभाव नष्ट कर देता है। कारण वही है। उसे पता ही नहीं कि बर्ताव की कुशलता किसे कहते हैं।
कई लोग अपने आपको मुंहफट समझते हैं और इस पर घमंड करते है। वे सोचते हैं, यह ईमानदारी है, यह ऊंचे चाल-चलन की निशानी है। वे बात को घुमा-फिराकर कहना दुर्बलता समझते हैं, लोगों से बर्ताव करने में चतुराई बरतना वे फिजूल समझते हैं।
लेकिन इस प्रकार के आदमी कभी भी अधिक सफलता नहीं प्राप्त करते। वे लोग अपने को ईमानदार समझते है; परन्तु उनमें बर्ताव की चतुराई की कमी है। उनमें समझदारी की कमी है। इसके कारण उनके अच्छे काम भी धरे रह जाते हैं। वे नहीं जानते कि लोगों को वश में कैसे किया जाता है। वे लोगों से मेल-मिलाप बना नहीं पाते और सदा कष्ट पाते हैं।
यह सच है कि हम सब मनुष्य हैं और चाहते हैं कि हमसे बर्ताव करने वाला सोच-विचारकर बर्ताव करे। हमें उन्हीं से व्यवहार करने में प्रसन्नता होती है, जो सोचकर व्यवहार और बातचीत करे। बर्ताव में कुशलता समझदारी का ही दूसरा नाम है।
मुंहफट होना मूर्खता है, बुद्धिहीनता है। मुंहफट आदमी अच्छा नहीं होता। मुंहफट की बात दूसरों के हृदय में घाव कर देती है।
आप भले ही मुंहफट होना गुण मानते हों, लेकिन लोग इसे पसंद नहीं करते। वे मुंहफट आदमी की तारीफ नहीं करते। कुछ लोग जैसा सोचते हैं, बिल्कुल वैसा ही कह देते हैं। ऐसे लोगों के अधिक और अच्छे मित्र नहीं होते। उन्हें काम-धन्धें में, व्यापार में भी ऊंचे दर्जे की सफलता नहीं मिलती। जो सत्य दूसरे के दिल को चोट पहुंचाए, उसे न कहना ही अच्छा है।
एडीसन ने कहा है-‘‘किसी मनुष्य में भले ही विद्या या बुद्धि अधिक न हो; परन्तु उसमें स्वाभाविक समझदारी और सूझबूझ हो, तो वह अपने संपर्क में आए लोगों के साथ अधिक मेल जोल पैदा कर सकता है और यदि इस गुण की कमी हो, तो भले ही वह कितना बुद्धिमान हो, दूसरों से मेलजोल में सफल नहीं होता।’’
एक अन्य लेखक ने लिखा है-‘‘बड़ी शक्तिवाला आदमी भी यदि चतुराई के बिना छोटी-सी शक्ति को अपने वश में करने का प्रयत्न करे, तो वह छोटी शक्ति कई बार जोरदार मुकाबला करती है।’’
बर्ताव में कुशल मनुष्य न केवल उस काम में अधिक लाभ पा लेता है, जिसे वह जानता है, बल्कि उन कामों में भी लाभ प्राप्त कर लेता है, जिन्हें वह नहीं जानता। वह अपनी चतुराई का ठीक ढंग से प्रयोग करके, न केवल अपने अज्ञान को छिपा लेता है बल्कि अनजाने स्थान में ही अपनी चतुराई से दूसरों से काम लेकर, सफलता प्राप्त कर लेता है। चतुराई और व्यवहार की कुशलता के बिना आदमी अपने जाने-पहचाने स्थान में भी अनाड़ी साबित होता है।
नम्रता और मुस्कराहट ये दो बातें लोक-व्यवहार में बड़ी उपयोगी होती हैं। बोली की मिठास से आपस में तनाव दूर हो जाता है। हम कई बार मुस्करा पड़ते हैं और बाद में हमें पता चलता है कि हमारी मुस्कान ने बात को बिगड़ने से बचा लिया है, पर मुस्कान में छल नहीं होना चाहिए। मुस्कान वही विजयी होती है, जिसके पीछे सच्चाई का बल हो।
ज्ञान की प्यास जगाइए !
मनुष्य में जानने की इच्छा स्वाभाविक है। हर बात को बारीकी से जानने की
इच्छा उसमें कुदरती तौर पर पाई जाती है। इसी से मनुष्य ने चांद-सितारों,
सूर्य और नक्षत्रों की जानकारी पाई। वर्ष के दिनों की जानकारी प्राप्त की।
इसी से उसने महीने, सप्ताह और दिनों का हिसाब लगाया। इसी से मनुष्य धरती
की चाल को जान पाया। उसने धरती को नापा और उसके नापने के माप मीटर आदि
बनाए। इसी से उसने गिनती और हिसाब को जाना, इसी से नाप और तोल के अनेक
तरीके निकाले। इसी से मनुष्य ने जाना कि धरती सूरज के इर्द-गिर्द घूमती
है। इसी से मनुष्य ने धरती की आकर्षण-शक्ति को जाना। इसी से मनुष्य ने
प्रकाश के रहस्य को जाना और रात के अंधेरे में प्रकाश करने वाले उपाय
निकाले। इसी से मनुष्य ने दीपक, लालटेन और बिजली की बत्तियां बनाई। इसी से
मनुष्य ने रेलें, ट्रामें, मोटरें, बिजली की गाड़ियां, समुद्री जहाज बनाए।
इसी से मनुष्य ने पानी के गुण और लाभ जान लिए। पानी को वश में करके उसे अपने काम में लाने के लिए उसने नदियां, तालाब, नहरें, कुएं, बिजली के कुएं आदि बनाए।
जानने की चाह से ही मनुष्य ने संगीत के अनेका-नेक बाजे बजाए, राग-रागनियों के भेद निकाले, सुर और ताल का पता लगाया। गीतों को उसने सुर-ताल में भरकर मनुष्य के जीवन को आनन्दमय बनाया। पृथ्वी को जीने योग्य बनाया। इसी से मनुष्य ने सागर के अन्दर घुसकर मोती और मूंगे निकाले। इसी से मनुष्य ने चट्टानों और खानों को खोदकर उनमें से सोना, चाँदी, तांबा, लोहा आदि धातुएं और पैट्रोल, कोयला व कीमती पत्थर (हीरे) खोद निकाले। इसी ज्ञान की चाह से उसने सल्फर, फास्फोरस, रेडियम आदि का पता लगाया। जानने की प्यास से ही मनुष्य ने ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि गैसों का पता लगाया।
इसी से मनुष्य ने कोलगैस, कोलतार तरह-तरह के रंग, सोडा, गंधक का तेजाब, कार्बोलिक तेजाब आदि बनाए।
ज्ञान की प्यास से ही मनुष्य ने पशुओं की नस्लों का पता लगाया और पशुओं की नस्लों को सुधार के उपाय निकाले। उनके रोगों के इलाज भी खोज निकाले।
ज्ञान की चाह से ही मनुष्य ने पशुओं के मांस, चमड़े और हड्डी से अनेक वस्तुएं बनाई और उनके बालों को कई कामों में इस्तेमाल किया।
ज्ञान की चाह से ही मनुष्य ने पेड़ों, बेलों, झाड़ियों, पौधों की किस्मों का पता लगाया। उन्हें खेतों में, बागों में, जंगलों में उगाने के तरीके खोज निकाले। उन्हें बढ़ाने, फैलाने, उनमें परिवर्तन करने और उनमें तरक्की लाने में सफलता पाई।
इस ज्ञान की लालसा से मनुष्य ने वनस्पतियों में जीवन खोजा और उसे यन्त्रों से साबित कर दिखाया, वनस्पतियों की जड़, तना, शाखा, पत्तो, फल, फूल से तरह-तरह की दवाइयां मनुष्य ने बनाईं।
इसी से मनुष्य ने यह जाना कि संसार में प्राणी कैसे पैदा हुए, युग-युग में उनमें कैसे तब्दीलियां आई और मनुष्य प्राणी कैसे बना।
इसी से मनुष्य ने यह जाना कि परिवार और समाज क्या होता है और कैसे बनाया जाता है ? नगर और भवन कैसे बनाए जाते हैं ? खेत और खलिहान कैसे बनाए जाते हैं ? खेतों में काम कैसे किया जाता है ? रूई, रेशम और ऊन आदि से कपड़ा कैसे बनता है ?
इसी से मनुष्य ने पृथ्वी के महाद्वीपों को जाना। देश-देश का आपस में लेन-देन हुआ। सभ्यता फैली। पुस्तकें बनीं। ज्ञान का भंडार, सभ्यता का मतलब, धर्म का निचोड़, इतिहास की कथाएं, कवियों के गीत उन पुस्तकों में प्रकट हुए।
ज्ञान की प्यास से ही भवन-निर्माण कला, मूर्ति-कला, चित्रकला, संगीत कला और काव्य कला का विकास हुआ।
इसी चाह से मनुष्य ने नीति के, व्यवहार के, राज्य के, शासन के नियम बनाए और उन उसूलों की खोज की, जिनसे मनुष्य धरती पर सुख से जीवन बिता सके।
ज्ञान से ही विवेक आता है। विवेक का अर्थ है भले-बुरे काम की पहाचन। यह काम करना चाहिए और यह काम नहीं करना चाहिए-इसी ज्ञान का नाम विवेक है।
हम और आप उस ज्ञान को यदि पाना चाहते हैं तो सोचें, विचारें, गुरुओं से पूछें, पुस्तकें पढ़ें, खोज करें। इस तरह हम ज्ञान को पाकर अपने जीवन को ऊंचा उठा सकते हैं, अपने चरित्र को ऊंचा उठा सकते हैं, अपने परिवार को ऊंचा उठा सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को मार डालने की धमकी दी गई, पर वह अपने कर्त्तव्य पर डटा रहा। दक्षिणी अमेरिका ने बगावत कर दी। उनकी सेनाओं ने उत्तरी अमेरिका से युद्ध छेड़ दिया। अन्त में उत्तरी अमेरिका की विजय हुई। विजय के बाद भी लिंकन का विरोध होता रहा। पर वह अपने कर्त्तव्य पर डटा रहा। अन्त में इसी कर्त्तव्य पर वह बलिदान हो गया।
महाकवि सूरदास ने आंखें न होने पर भी कृष्ण-भक्ति से सवा लाख गीत बनाए।
बंगाल में बाबू प्रतापचन्द्र राय हुए हैं। उन्होंने महाभारत को अंग्रेजी में छपवाने का निश्चय किया। सौ भागों में पुस्तक निकालने का निश्चय किया गया था। लगातार बारह बरस तक राय महाशय ने कठोर परिश्रम किया। सारे देश में एक जगह से दूसरी जगह उन्हें जाना पड़ा। घर की सारी जमापूंजी उन्होंने इस काम में लगा दी। किसान से लेकर राजा-महाराजाओं तक से वह सहायता मांगने गए।
जिस समय 94 भाग निकल चुके तो अचानक बाबू प्रतापचन्द्र राय को बुखार आया और उसी में उनकी मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,-‘‘मेरे मरने पर श्राद्ध वगैरह पर खर्च मत करना। मेरे जीवन का कर्त्तव्य था, महाभारत को अंग्रजी में एक सौ भागों में निकालना। तुम इस काम को पूरा करना। गांगुली महाशय आगे अनुवाद करते रहेंगे। चाहे सब कुछ बिक जाए, परन्तु महाभारत के सौ भाग पूरे छपने चाहिए।’’
बाबू प्रतापचन्द्र राय की विधवा सुन्दरी बाला ने अनेक कष्ट सहकर भी सौ भाग पूरे किए और योरुप ने इस किताब से जाना कि भारत कितना सभ्य देश है।
कर्त्तव्य-पालन में कष्ट-सहन ही चरित्र की कसौटी है।
इसी से मनुष्य ने पानी के गुण और लाभ जान लिए। पानी को वश में करके उसे अपने काम में लाने के लिए उसने नदियां, तालाब, नहरें, कुएं, बिजली के कुएं आदि बनाए।
जानने की चाह से ही मनुष्य ने संगीत के अनेका-नेक बाजे बजाए, राग-रागनियों के भेद निकाले, सुर और ताल का पता लगाया। गीतों को उसने सुर-ताल में भरकर मनुष्य के जीवन को आनन्दमय बनाया। पृथ्वी को जीने योग्य बनाया। इसी से मनुष्य ने सागर के अन्दर घुसकर मोती और मूंगे निकाले। इसी से मनुष्य ने चट्टानों और खानों को खोदकर उनमें से सोना, चाँदी, तांबा, लोहा आदि धातुएं और पैट्रोल, कोयला व कीमती पत्थर (हीरे) खोद निकाले। इसी ज्ञान की चाह से उसने सल्फर, फास्फोरस, रेडियम आदि का पता लगाया। जानने की प्यास से ही मनुष्य ने ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि गैसों का पता लगाया।
इसी से मनुष्य ने कोलगैस, कोलतार तरह-तरह के रंग, सोडा, गंधक का तेजाब, कार्बोलिक तेजाब आदि बनाए।
ज्ञान की प्यास से ही मनुष्य ने पशुओं की नस्लों का पता लगाया और पशुओं की नस्लों को सुधार के उपाय निकाले। उनके रोगों के इलाज भी खोज निकाले।
ज्ञान की चाह से ही मनुष्य ने पशुओं के मांस, चमड़े और हड्डी से अनेक वस्तुएं बनाई और उनके बालों को कई कामों में इस्तेमाल किया।
ज्ञान की चाह से ही मनुष्य ने पेड़ों, बेलों, झाड़ियों, पौधों की किस्मों का पता लगाया। उन्हें खेतों में, बागों में, जंगलों में उगाने के तरीके खोज निकाले। उन्हें बढ़ाने, फैलाने, उनमें परिवर्तन करने और उनमें तरक्की लाने में सफलता पाई।
इस ज्ञान की लालसा से मनुष्य ने वनस्पतियों में जीवन खोजा और उसे यन्त्रों से साबित कर दिखाया, वनस्पतियों की जड़, तना, शाखा, पत्तो, फल, फूल से तरह-तरह की दवाइयां मनुष्य ने बनाईं।
इसी से मनुष्य ने यह जाना कि संसार में प्राणी कैसे पैदा हुए, युग-युग में उनमें कैसे तब्दीलियां आई और मनुष्य प्राणी कैसे बना।
इसी से मनुष्य ने यह जाना कि परिवार और समाज क्या होता है और कैसे बनाया जाता है ? नगर और भवन कैसे बनाए जाते हैं ? खेत और खलिहान कैसे बनाए जाते हैं ? खेतों में काम कैसे किया जाता है ? रूई, रेशम और ऊन आदि से कपड़ा कैसे बनता है ?
इसी से मनुष्य ने पृथ्वी के महाद्वीपों को जाना। देश-देश का आपस में लेन-देन हुआ। सभ्यता फैली। पुस्तकें बनीं। ज्ञान का भंडार, सभ्यता का मतलब, धर्म का निचोड़, इतिहास की कथाएं, कवियों के गीत उन पुस्तकों में प्रकट हुए।
ज्ञान की प्यास से ही भवन-निर्माण कला, मूर्ति-कला, चित्रकला, संगीत कला और काव्य कला का विकास हुआ।
इसी चाह से मनुष्य ने नीति के, व्यवहार के, राज्य के, शासन के नियम बनाए और उन उसूलों की खोज की, जिनसे मनुष्य धरती पर सुख से जीवन बिता सके।
ज्ञान से ही विवेक आता है। विवेक का अर्थ है भले-बुरे काम की पहाचन। यह काम करना चाहिए और यह काम नहीं करना चाहिए-इसी ज्ञान का नाम विवेक है।
हम और आप उस ज्ञान को यदि पाना चाहते हैं तो सोचें, विचारें, गुरुओं से पूछें, पुस्तकें पढ़ें, खोज करें। इस तरह हम ज्ञान को पाकर अपने जीवन को ऊंचा उठा सकते हैं, अपने चरित्र को ऊंचा उठा सकते हैं, अपने परिवार को ऊंचा उठा सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को मार डालने की धमकी दी गई, पर वह अपने कर्त्तव्य पर डटा रहा। दक्षिणी अमेरिका ने बगावत कर दी। उनकी सेनाओं ने उत्तरी अमेरिका से युद्ध छेड़ दिया। अन्त में उत्तरी अमेरिका की विजय हुई। विजय के बाद भी लिंकन का विरोध होता रहा। पर वह अपने कर्त्तव्य पर डटा रहा। अन्त में इसी कर्त्तव्य पर वह बलिदान हो गया।
महाकवि सूरदास ने आंखें न होने पर भी कृष्ण-भक्ति से सवा लाख गीत बनाए।
बंगाल में बाबू प्रतापचन्द्र राय हुए हैं। उन्होंने महाभारत को अंग्रेजी में छपवाने का निश्चय किया। सौ भागों में पुस्तक निकालने का निश्चय किया गया था। लगातार बारह बरस तक राय महाशय ने कठोर परिश्रम किया। सारे देश में एक जगह से दूसरी जगह उन्हें जाना पड़ा। घर की सारी जमापूंजी उन्होंने इस काम में लगा दी। किसान से लेकर राजा-महाराजाओं तक से वह सहायता मांगने गए।
जिस समय 94 भाग निकल चुके तो अचानक बाबू प्रतापचन्द्र राय को बुखार आया और उसी में उनकी मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,-‘‘मेरे मरने पर श्राद्ध वगैरह पर खर्च मत करना। मेरे जीवन का कर्त्तव्य था, महाभारत को अंग्रजी में एक सौ भागों में निकालना। तुम इस काम को पूरा करना। गांगुली महाशय आगे अनुवाद करते रहेंगे। चाहे सब कुछ बिक जाए, परन्तु महाभारत के सौ भाग पूरे छपने चाहिए।’’
बाबू प्रतापचन्द्र राय की विधवा सुन्दरी बाला ने अनेक कष्ट सहकर भी सौ भाग पूरे किए और योरुप ने इस किताब से जाना कि भारत कितना सभ्य देश है।
कर्त्तव्य-पालन में कष्ट-सहन ही चरित्र की कसौटी है।
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लोगों की राय
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